Friday, May 14, 2021

ध्यान: एक व्यावहारिक प्रक्रिया

 ध्यान शब्द का प्रयोग हम लोग दिन में कई बार करते हैं, जैसे –जरा ध्यान से चलना कहीं ठोकर न लग जाये या कोई दुर्घटना न हो जाये। बच्चों से हम अक्सर कहते हैं — ‘ ध्यान लगाकर पढ़ो, तुम्हारा ध्यान तो खेल में है ।’ “काम तो खराब ही होगा, जब काम कहीं होगा और ध्यान कहीं तुम्हारा ध्यान कहां है?’ “देखकर नहीं चला जाता क्या?” आदि सवाल ध्यान को रोजमर्रा की प्रक्रिया बताते हैं। ध्यान का मतलब है, वर्तमान में रहना। वर्तमान में रहने से ही हम अपने हर काम को ठीक तरह से कर सकते हैं — ठीक सुन सकते हैं, ठीक बोल सकते हैं, ठीक सोच सकते हैं|

वर्तमान में रहने से ही हम उचित व सही निर्णय लें सकते हैं। जब हमारा काम ठीक होगा, तभी हम अपनी समस्या को उचित दिशा देकर सुलझा सकेंगे, ठीक निर्णय ले सकेंगे। तभी हम प्रसन्न भी रह सकेंगे। और जब यह प्रसन्नता बनी. रहेगी तो धीरे-धीरे आनंद का रूप ले लेगी।

आनंद में रहने का दूसरा नाम परमात्मा में रहना है । इसके लिए ध्यान में रहना आवश्यक है। इसी के अभ्यास के लिएं, योगियों, ऋषियों तथा महात्माओं ने अनेक विधियों की चर्चा की है। संसार में अनेक विधियां प्रचलित हैं। जिस विधि पर हमें विश्वास और श्रद्धा हो, और सबसे बढ़कर जिसकी हममें योग्यता हो (इसका निर्णय ‘ गुरु’ के हाथों में पूरी तरह से छोड़ना पड़ता है), वही हमारे लिए उचित है।

ध्यान हर एक के लिए परमावश्यक है | संन्यासी, गृहस्थी, विद्यार्थी, वकील, डॉक्टर दुकानदार, पुरुष, महिलाएं सबको ध्यान से लाभ मिलेगा। स्वस्थ लोगों के लिए भी और रोगियों के लिए भी यह जरूरी है | पूर्ण लगे या अधूरा प्रतिदिन 0-5 मिनट का ध्यान तो जरूर करना ही चाहिए।


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